THE SMART TRICK OF BHOOT KI KAHANI THAT NOBODY IS DISCUSSING

The smart Trick of bhoot ki kahani That Nobody is Discussing

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Bhoot ki kahani

हैलो दोस्तो अगर इस कहानी में कुछ गलतियां हो तो माफ़ करना ओर अगर अच्छी लगे तो कॉमेंट्स करना ताकि मोटीवेशन मिले। आशा करता हूं आप सबको पसंद आएगी। तो चलिए कहानी शुरू करता हूं। मेरा नाम अभय शर्मा है। जैसा ...

मैं उसके पास रुका भी नहीं क्योंकि मुझे उस लड़की से डर लग रहा था। वह लड़की कई दिनों तक मुझे देखती रहती थी। एक दिन वह लड़की वहां पर नहीं दिखाई दी।तो मैं सोच में पड़ गया।

अपनी आंखें मली। उसे फिर भी वह आदमी धुंधला ही दिखाई दे रहा था। रमेश ने उस आदमी को बुलाने की कोशिश की तो वह भागने लगा। रमेश भी उसके पीछे भागने लगा और वह आदमी अचानक से पटरी की तरफ भागने लगा और गायब हो गया।

*ये सीरीज पूर्व प्रकाशित सीरीज "मिट्टी - अंत या शुरुआत" का दूसरा सीजन है। तो इसे पढ़ने के पूर्व पहले उसे पढ़ लें। मिट्टी - अंत या शुरुआत" मेरी प्रोफाइल पर मौजूद है ***** वो रात्रि का दूसरा प्रहर था। ...

औरत ने पूछा क्या लाऊं फिर अघोरी ने बोला जैसे नींबू ,सवा किलो मिठाई, सवा मीटर लाल कपड़ा और एक फूलों का हार लेकर आओ .

क्यों मजाक कर रहे हो । अभी तो तुमने बीड़ी अपने हाथ में ली थी। तो उसने बोला कि हमको तो दिया ही नहीं हमको लगा। कि यह मजाक कर रहा है.

बच्चों को डर के मारे कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन फिरभी बे हिम्मत नहीं हारे और सब एकसाथ मिलकर बाहर निकलनेका रास्ता ढूंढने लगे। ढूंढते ढूंढते एक बच्चे को एक पुरानी किताब मिला, जो की एक जादुई किताब था। और उस किताब में एक जादुई मंत्र लिखा था जिसके उच्चारण करने से वह भुत घर से दूर भाग सकती थी।

 रास्ते मैं छोटे-छोटे गॉव की बस्तियां थी जिधर से मैं गुजर रहा था । अचानक मेरी नज़र रस्ते के किनारे एक छोटे से बस स्टैंड पर पड़ी जहाँ एक औरत शायद अपने घर जाने के लिए बस का इन्तेजार कर रही थी । वह लाल और सफ़ेद पाढ़ वाले साड़ी पहनी हुई थी और उसके हाँथ मैं एक बड़ा सा हैण्डबैग था , उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी ऑफिस से काम करती होगी।लेकिन मैं मन ही मन ये भी सोंच रहा था की आधी रात को वो यहाँ क्या रही है । मैं जब वहां से गुज़रा तो उसने मुझे रुकने का इशारा किया ,मैंने अपनी बाइक रोक दी ।

ऐसा क्या हुआ जो वह लड़की आज नहीं आई । फिर मैं अपने घर की तरफ निकल पड़ा। एक हफ्ते बाद मेरे घर पर एक चिट्ठी आई और मुझे पता चल गया था कि यह चिट्ठी उसकी ही है। उसमें उसका नाम प्रीति लिखा हुआ था।

उसने वह शॉल उठाया और सुबह घर लौट गया। वह इस हादसे को एक बुरे सपने की तरह भूल गया था। इतनी सुनसान जगह और इतनी गहरी रात। बुरा सपना ही होगा। रमेश तो इस वीराने में अपना मानसिक संतुलन खो दे। उसने सोचा कि उसे नींद आ रही थी और उसने नींद में सपना देखा। अगली रात वह फिर से ड्यूटी दे रहा था।

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उसे सब धुंधला दिखाई दे रहा था। वह डर से चिल्लाने लगा। तभी रेलवे स्टेशन मास्टर प्रसाद भागा हुआ आया और उसने रमेश को पटरी से बाहर निकाला। रमेश कुछ देर तक बेहोश रहा। रेलवे मास्टर प्रसाद ने रमेश के ऊपर पानी छिड़का तो वह उठकर चिल्लाने लगा। प्रसाद ने उसे शांत किया और उसे दिलासा दिया कि वह ठीक है। रमेश को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह कैसे हादसे हो रहे हैं। प्रसाद ने पहले तो उसे डांटा कि वह पटरी के इतने पास क्यों गया।

वह एक रात ड्यूटी कर ही रहा था कि तभी उसने देखा कि घड़ी में दो बज गए थे। सारा प्लैटफॉर्म खाली था। तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। गार्ड ने देखा कि वहां कोई नहीं था। वह प्लैटफॉर्म के चक्कर काटने लगा कि तभी उसे परछाई दूर जाती हुई दिखाई दी। वह परछाई एक शरीर में बदल गई और उस गार्ड के पास जाकर खड़ी हो गई। गार्ड ने पीछे मुड़कर देखा और उसके सामने रमेश खड़ा था।

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